तबियत नासाज़ है कुछ दिनों से
और कुछ दिनों से थका सा हूँ,
दौड़ रहा था जीवन की दौड़ में
और अब जैसे बस रुका सा हूँ ,
अब बस रुक कर सोना चाहता हूँ
मै अब घर वापस होना चाहता हूँ |
फितरत कुछ मेरी बदली सी हो गयी है
समझ जैसे कुछ धुंधली सी हो गयी है,
चिंता के भाव बने है चेहरे पर
और मुस्कराहट भी ये नकली सी हो गयी है ,
जो भी पाया सब खोना चाहता हूँ
मै अब घर वापस होना चाहता हूँ |
कभी लगता था सब कुछ है मेरे पास
ना थी कुछ और पाने की आस,
अब सब कुछ जैसे लुटा सा है
अगर है तो बस खलीपन का एहसास,
माँ के आँचल से लिपट कर रोना चाहता हूँ
मै अब घर वापस होना चाहता हूँ |
सोचता था की मै सब सच कहता हूँ
और सब के झूठ को सहता हूँ ,
मै भी झूठा हूँ ये कहना चाहता हूँ
सच के परिणामों को सहना चाहता हूँ,
अपने सब पापों को धोना चाहता हूँ
मै अब घर वापस होना चाहता हूँ |
अब बस रुक कर सोना चाहता हूँ
जो भी पाया सब खोना चाहता हूँ,
माँ के आँचल से लिपट कर रोना चाहता हूँ
अपने सब पापों को धोना चाहता हूँ,
की मै अब घर वापस होना चाहता हूँ
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